Calcutta high court
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने एक महिला को उसके 26 हफ्ते के भ्रूण को गिराने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है। महिला ने भ्रूण में संभावित विकार होने पर गर्भपात की अनुमति मांगी थी। न्यायाधीश तपब्रत चक्रवर्ती ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में पाया कि भ्रूण पूरी तरह से विकसित हो गया है और गर्भावस्था जारी रखने पर याची महिला की जान को कोई खतरा नहीं है।
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सरकारी एसएसकेएम अस्पताल के मेडिकल बोर्ड ने अपनी एक रिपोर्ट उच्च न्यायालय को बताया कि अगर शिशु को समय से जन्म दिया जाए तो शिशु की स्थिति बेहतर हो सकती है। मेडिकल बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि भ्रूण डाउन सिंड्रोम से पीड़ित है। इसके साथ ही घेघा, हृदय और पेट में कुछ समस्याएं हैं।
महिला के वकील ने बताया कि भ्रूण के असामान्य होने पर अपने डॉक्टर से परामर्श लेने के बाद 22 जनवरी को गर्भपात कराने के लिए याचिका दाखिल की थी। वकील ने कोर्ट को बताया था कि दंपती का पहले ही एक बच्चा है। महिला एक गृहणी हैं और उसके पति एक निजी कंपनी में कार्यरत हैं। ऐसे में अगर शिशु विकृतियों के साथ पैदा होगा तो परिवार पर उसके पोषण पर होने वाले खर्च का आर्थिक बोझ बढ़ जाएगा।
गौरतलब है कि टर्मिनेशन ऑफ प्रीगनेंसी एक्ट, 1971 के मुताबिक 20 हफ्ते के या उससे अधिक अवधि के भ्रूण का गर्भपात करने के लिए उच्च न्यायालय की इजाजत लेने की जरूरत होती है।
महिला के वकील ने बताया कि भ्रूण के असामान्य होने पर अपने डॉक्टर से परामर्श लेने के बाद 22 जनवरी को गर्भपात कराने के लिए याचिका दाखिल की थी। वकील ने कोर्ट को बताया था कि दंपती का पहले ही एक बच्चा है। महिला एक गृहणी हैं और उसके पति एक निजी कंपनी में कार्यरत हैं। ऐसे में अगर शिशु विकृतियों के साथ पैदा होगा तो परिवार पर उसके पोषण पर होने वाले खर्च का आर्थिक बोझ बढ़ जाएगा।
गौरतलब है कि टर्मिनेशन ऑफ प्रीगनेंसी एक्ट, 1971 के मुताबिक 20 हफ्ते के या उससे अधिक अवधि के भ्रूण का गर्भपात करने के लिए उच्च न्यायालय की इजाजत लेने की जरूरत होती है।
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