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राज संवाददाता
लखनऊ। जिलाधिकारी, हरदोई ने एक व्यक्ति की गाड़ी यह कहते हुए रिलीज करने से इंकार कर दिया कि उक्त व्यक्ति पर एक आपराधिक मुकदमा है इसलिए वह ‘बदनाम व्यक्ति है लिहाजा उसका वाहन रिलीज नहीं किया जा सकता। जिसके बाद जिलाधिकारी के उक्त आदेश को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के समक्ष चुनौती दी गई। जिस पर हाईकोर्ट ने जिलाधिकारी से पूछा कि वह किस कानून के तहत किसी व्यक्ति के बदनाम होने या न होने को तय करते हैं। इसका कोई जवाब जिलाधिकारी के पास नहीं था। न्यायालय ने जिलाधिकारी के इस कृत्य पर सख्त टिप्पणी करते हुए, उन पर बीस हजार रुपये हर्जाना लगाया है। न्यायालय ने आदेश दिया है कि हर्जाने की रकम याची को जरिये ड्राफ्ट प्रदान की जाए।
यह आदेश न्यायमूर्ति अजय लाम्बा और न्यायमूर्ति डीके सिंह की खंडपीठ ने धर्मेंद्र कुमार की याचिका पर दिया। याची का कहना था कि 15 जुलाई 2017 को वह शाहाबाद बाजार अपनी नई गाड़ी से आया था जिस पर टेम्परेरी रजिस्ट्रेशन नम्बर पड़ा था। उसने अपनी गाड़ी सड़क किनारे खड़ी कर दी लेकिन जब अपने काम से लौट के आया तो गाड़ी वहां नहीं थी। पता चला कि गाड़ी शाहाबाद थाने में खड़ी है। याची को बताया गया कि उसकी गाड़ी को लावारिस मानते हुए सीज कर दिया गया है। इस पर याची ने जिलाधिकारी, हरदोई को खुद के वाहन मालिक होने सम्बंधी दस्तावेज देते हुए, उसके वाहन को छोड़ने की गुहार लगाई। जिलाधिकारी ने उसकी प्रार्थना को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उसके खिलाफ एक आपराधिक मुकदमा है जिसकी वजह से उसकी प्रतिष्ठा अच्छी नहीं है। हालांकि जिलाधिकारी ने यह भी माना कि वाहन कि उक्त वाहन न तो किसी आपराधिक गतिविधि में इस्तेमाल किया गया है और न ही कोई केस प्रॉपर्टी है।
न्यायालय ने याचिका पर सुनवाई करते हुए जिलधिकारी पुलकित खरे से जवाब मांगा कि एक आपराधिक मामले में बिना निर्णय के उन्होंने कैसे और किस प्रावधान के तहत तय किया कि याची एक बदनाम व्यक्ति है। न्यायालय ने जिलाधिकारी को यह भी बताने को कहा कि जब याची ही वाहन का मालिक था तो किस अधिकार के तहत उसके वाहन को कस्टडी में रखा गया। न्यायालय के आदेश के अनुपालन में जिलाधिकारी ने हलफनामा दाखिल करते हुए, अपनी गलती के लिए माफी मांगी। हालांकि न्यायालय ने पूछे गए प्रश्नों का उनकी ओर से कोई जवाब न पाते हुए कहा कि जिलाधिकारी का आदेश कानून की सीमाओं और याची के अधिकारों का उल्लंघन है। उक्त आदेश मनमाने और गैर जिम्मेदार तरीके से लिया गया है।
ऐसा होने लगा तो लोग भय के वातावरण में जिएंगे
न्यायालय ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि इस प्रकार से किसी को बदनाम व्यक्ति मानते हुए यदि उसकी सम्पत्ति को सीज किया जाने लगा तो लोग भय के वातावरण में जिएंगे। न्यायालय ने कहा कि कोर्ट को संवेदनशील होने की आवश्यकता है जबकि नागरिकों के सामने ऐसी विकट परिस्थिति हो कि वे ऐसे सरकारी अधिकारियों की दय पर निर्भर हों जो बिना क्षेत्राधिकार के गैर जिम्मेदारी भरे आदेश देते हों।
न्यायालय ने आदेश की प्रति मुख्य सचिव को भी भेजने के आदेश दिए।
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