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
यह सुनने में अटपटा लगेगा, लेकिन यह सच्चाई यह है कि देश एक बार फिर से लौह अयस्क का शुद्ध आयातक बन गया है। आयात बढ़ने की मुख्य वजह लौह अयस्क की खदानों से लोहा व इस्पात बनाने वाले कारखानों तक मालगाड़ी का रैक नहीं मिलना बताया जाता है। हालांकि रेलवे के अधिकारियों का कहना है कि देश में मालगाड़ी के रैक की कोई कमी नहीं है, जिस भी उद्योग की जितने रैक की जरूरत होती है, उपलब्ध कराया जाता है।
दिल्ली में इस्पात उद्योग से जुडे़ एक कार्यक्रम के दौरान एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक तुहिन बनर्जी ने संवाददाताओं से जिक्र किया था कि भारत एक बार फिर से लौह अयस्क का शुद्ध आयातक बन गया है। इसके आयात बढ़ने की मुख्य वजह ओवरलोडेड रेलवे सिस्टम है। उनके मुताबिक सेल या टाटा जैसी बड़ी कंपनियों को तो रेलवे की तरफ से मालगाड़ी का रैक मिलने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन निजी क्षेत्र की छोटी कंपनियों को मुश्किलें आ रहीं हैं।
घरेलू उत्पादन और आयात दोनों बढ़ा
तुहिन बनर्जी की बातों की पुष्टि केंद्रीय वाणिज्य मंत्रालय के आंकड़ों से भी होती है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष के शुरुआती पांच महीनों में ही 63.40 लाख टन लौह अयस्क का आयात हो चुका है जो कि एक साल पहले की इसी अवधि के मुकाबले 190 फीसदी की बढ़ोतरी को दर्शाता है। इसी अवधि के दौरान महज 25 लाख टन लौह अयस्क का निर्यात हुआ है। मतलब, इस कमोडिटी में भारत शुद्ध रुप से आयातक बन गया है।
यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि वर्ष 2017-18 के 12 महीनों में कुल 86 लाख टन लौह अयस्क का आयात हुआ था। उस वर्ष भी एक वर्ष पहले की इसी अवधि के मुकाबले 48 फीसदी ज्यादा लौह अयस्क आया था। जहां तक घरेलू उत्पादन की बात है तो बीते वर्ष कुल 2,100 लाख टन लौह अयस्क का उत्पादन हुआ था जबकि 2014-15 में यह 1,290 लाख टन ही था।
यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि वर्ष 2017-18 के 12 महीनों में कुल 86 लाख टन लौह अयस्क का आयात हुआ था। उस वर्ष भी एक वर्ष पहले की इसी अवधि के मुकाबले 48 फीसदी ज्यादा लौह अयस्क आया था। जहां तक घरेलू उत्पादन की बात है तो बीते वर्ष कुल 2,100 लाख टन लौह अयस्क का उत्पादन हुआ था जबकि 2014-15 में यह 1,290 लाख टन ही था।
आयात नहीं है सस्ता विकल्प
केंद्रीय इस्पात मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि हालांकि विदेश से भी लौह अयस्क मंगाना कोई सस्ता विकल्प नहीं है, लेकिन इस्पात कंपनियों के लिए यह मजबूरी है। देसी लौह अयस्क को खदान से ढो कर कारखाना तक पहुंचाने के लिए रेलवे से समय पर मालगाड़ी का रैक नहीं मिलता है। इसलिए तटीय इलाकों के स्टील प्लांट में बाहर से लौह अयस्क मंगाना ज्यादा मुफीद पड़ता है। लेकिन हाल में डॉलर के मुकाबले रुपये के कमजोर पड़ने से आयात और महंगा हो गया है, जिसका असर चालू खाते के घाटे पर भी पड़ रहा है।
और बढे़गी आयातित अयस्क की मांग
अधिकारी का कहना है कि भारत में आने वाले दिनों में लौह अयस्क की मांग और बढे़गी। भारत ने इसी साल जापान को हटा कर दुनिया में दूसरा सबसे ज्यादा इस्पात उत्पादन करने वाले देश का तमगा हासिल किया है। इसी के साथ यहां ढांचागत संरचना क्षेत्र में तेजी से काम हो रहा है। इस समय वहां स्टील की तेजी से खपत बढ़ रही है। जाहिर है कि स्टील का निर्माण लौह अयस्क से ही होगा।
और बढे़गी आयातित अयस्क की मांग
अधिकारी का कहना है कि भारत में आने वाले दिनों में लौह अयस्क की मांग और बढे़गी। भारत ने इसी साल जापान को हटा कर दुनिया में दूसरा सबसे ज्यादा इस्पात उत्पादन करने वाले देश का तमगा हासिल किया है। इसी के साथ यहां ढांचागत संरचना क्षेत्र में तेजी से काम हो रहा है। इस समय वहां स्टील की तेजी से खपत बढ़ रही है। जाहिर है कि स्टील का निर्माण लौह अयस्क से ही होगा।
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